भारत का स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसी कहानी है जो साहस, बलिदान और आत्मविश्वास से भरी हुई है। लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे देश पर शासन किया, लेकिन हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के अटूट संघर्ष के कारण, 15 अगस्त 1947 को भारत ने आखिरकार आज़ादी की सांस ली। 2024 में, हम इस स्वतंत्रता का 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, जो हमारे लिए एक ऐसे युग की शुरुआत का प्रतीक है जिसने भारत को एक स्वतंत्र, संप्रभु और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
ब्रिटिश शासन का इतिहास
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 17वीं सदी की शुरुआत में भारत में व्यापार के उद्देश्य से प्रवेश किया, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारत के संसाधनों और भूमि पर कब्जा करना शुरू कर दिया। 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद, ब्रिटिशों ने भारत पर अपना राजनीतिक नियंत्रण स्थापित किया, और 19वीं सदी तक यह उपमहाद्वीप एक ब्रिटिश उपनिवेश बन गया। 1858 से 1947 तक का समय ‘ब्रिटिश राज’ के नाम से जाना जाता है, जब भारत पर सीधे ब्रिटिश क्राउन और संसद का शासन था।
स्वतंत्रता की पहली किरण
भारतीय जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ समय-समय पर विद्रोह किया। 1857 की क्रांति स्वतंत्रता संग्राम की पहली बड़ी कोशिश थी। भले ही यह विद्रोह सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने स्वतंत्रता की ललक को और प्रबल कर दिया। विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 के विद्रोह को “भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम” कहा और 1909 में अपनी पुस्तक “The History of the War of Indian Independence” के माध्यम से इस शब्द को लोकप्रिय किया। इसके बाद, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का गठन हुआ, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मंच प्रदान किया।
गांधीजी और अहिंसा का मार्ग
महात्मा गांधी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश स्वतंत्रता की लड़ाई को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करता है। गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाया और भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया। गांधीजी का मानना था, “स्वतंत्रता कभी भी सस्ती नहीं होती; यह जीवन की सांस है। जीवित रहने के लिए मनुष्य क्या नहीं करेगा?” उनके नेतृत्व में, भारत में एक नए किस्म की जागृति आई, जिसने संपूर्ण जनमानस को एक मंच पर ला दिया।
स्वतंत्रता संग्राम के महानायक
भारत की आज़ादी केवल एक व्यक्ति की मेहनत का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह लाखों लोगों के बलिदान और त्याग का नतीजा थी। स्वामी विवेकानंद ने बहुत पहले आह्वान कर दिया था कि “नया भारत किसानों की झोपड़ियों, हल पकड़ने वाले, मोची और झाडू लगाने वाले लोगों से उठेगा।” सुभाष चंद्र बोस, जिनकी आवाज़ में ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ की गूंज थी, ने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
भगत सिंह आज़ादी के विचार पर सही हि कहा था, “व्यक्तियों को मारना आसान है, लेकिन विचारों को नहीं। महान साम्राज्य ढह गए, लेकिन विचार जीवित रहे।” चंद्रशेखर आज़ाद ने भी अपने खून की उबाल को महसूस करते हुए कहा था, “अगर आपके खून में उबाल नहीं है, तो यह पानी है जो आपकी नसों में बह रहा है। यदि युवावस्था में यह उबाल मातृभूमि की सेवा के लिए नहीं है, तो इसका क्या फायदा?”
महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
महिलाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में न केवल भाग लिया, बल्कि इसे सशक्त और संगठित भी किया। उन्होंने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, दुकानों के पिकेटिंग, और अन्य प्रतिरोधी आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई। एनी बेसेन्ट, सरोजिनी नायडू, भीकाजी कामा, और अरुणा आसफ अली जैसी महिला सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भागीदार बनाया। इस संघर्ष ने महिलाओं को सशक्त किया और उन्हें घरेलू बंदिशों से बाहर निकालकर सार्वजनिक जीवन, पेशे, और शासन में अपनी जगह बनाने का अवसर दिया। उनका योगदान न केवल स्वतंत्रता संग्राम में, बल्कि स्वतंत्र भारत में भी महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
स्वतंत्रता दिवस का महत्व
स्वतंत्रता दिवस केवल एक दिन नहीं है, यह हमारे संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है। इस दिन हम उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर हमें आज़ादी दिलाई। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की कीमत क्या होती है और हम इसे बनाए रखने के लिए क्या कर सकते हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था, “जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करते, तब तक कानून द्वारा प्रदत्त कोई भी स्वतंत्रता आपके लिए उपलब्ध नहीं होगी।”
हर साल 15 अगस्त को लाल किले से तिरंगा फहराया जाता है और प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। इस दिन पूरे देश में स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में ध्वजारोहण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जहां देशभक्ति गीत गाए जाते हैं, नृत्य किए जाते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
स्वतंत्रता की वास्तविकता और चुनौतियाँ
15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी के साथ ही भारत का बंटवारा भी हुआ। इस विभाजन ने लाखों लोगों को विस्थापित किया और साम्प्रदायिक हिंसा की भयानक घटनाएं घटीं। आज, जब हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, तो यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक उपहार नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी भी है।
निष्कर्ष
भारत का स्वतंत्रता संग्राम हमारे इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। यह संग्राम हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों न हो, अगर हमारे पास साहस, विश्वास, और एकता हो, तो हम किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं। आज हमें गर्व है कि हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं, और इस स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हमें हमेशा तत्पर रहना चाहिए। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा,” लोकमान्य तिलक के इन शब्दों के साथ, हमें अपने देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।